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वर्तमान पिस्थितियों में सार्थक कुछ पंक्तियां। Written by me (harshit singhal)

      (कलयुगी इंसान कुछ तो शर्म कर)

 क्यों भाग रहा है, इतना जिंदगी में,

कुछ पल तो गुजार साथ अपने खून के रिश्तों में ,,

फिर आएगा समय जब नजदीक, करेगा तब मिन्नतें उस रब से,

अरे जाओ रे कोई हक नहीं तुम्हे, उसके सामने गिड़गिड़ाने से,,

जब तो तूने उसका इशारा समझा नहीं, 

अब कह रहा है अभी- नहीं अभी - नहीं,

चेताया था तुझे कई बार, कि ये कोई तेरे बाप की खैरात नहीं,

अरे और कितना गिरेगा तू, क्या इतने से तेरा पेट भरा नहीं,

शुक्र मना ऊपर वाले का ,जो अब तक तेरा हिसाब हुआ नहीं,

वरना इंसान तो क्या, तू किसी भी रूप में जिन्दा रहने के लायक नहीं,,

क्या मुँह ले कर जायेगा उसकी हाजिरी में,

जब वो काला चिट्ठा खोलेगा तेरे कारनामों के बारे में,,

अरे अब तो कुछ शर्म कर,

अपने बीते हुए नहीं, आने वाले कल के लिए तो डर,,

साथ तो लेकर जायेगा नहीं तू इसे,

तो क्यों कर रहा है जमा, आने वाली सदियों के लिए इसे,,

छोड़ दे ये आपा - धापी, अभी भी वक़्त है,

वरना बाद में कहना ना पड़े कि , अब क्या करूँ अब सब खत्म  है!!!!


  .... हर्षित सिंहल (Harshu)

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